सुख कहीं बाहर नहीं है |
एक रानी के पास एक नौलखा हार था। वह रानी को इतना पसंद था कि वह उसे हमेशा पहने रहती थी।एक दिन रानी वन विहार को गई। वहाँ एक सुंदर तालाब देख कर उसने स्नान करने का विचार किया। सेविकाओं ने चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लिया। रानी ने अपने अन्य आभूषणों के साथ वह हार भी उतार कर किनारे रख दिया और स्नान करने लगी।
पर स्नान पश्चात वह हार वहाँ नहीं मिला तो कोहराम मच गया। सेविकाओं की जान सूख गई। चारों ओर खोज की गई। अंत में वह हार तालाब के तल में दिखाई दिया।
बड़े बड़े तैराक बुलाए गए। पर हैरानी की बात है कि वह हार बाहर से तो दिखता था, पर भीतर जाने पर नहीं मिलता था। तब राजा ने हार निकाल लाने वाले को एक लाख रुपए देने की घोषणा कर दी।
एक संत अपने शिष्य के साथ वहाँ से गुजर रहे थे। सारा माजरा ध्यान से देख समझ कर, संत उस तालाब में झाँकने लगे और अपने शिष्य को उस तालाब के किनारे खड़े एक बड़े पेड़ पर चढ़ने को कहा।
शिष्य पेड़ पर चढ़ने लगा। उसकी परछाई पानी में देखते हुए, संत कहने लगे- और आगे, और आगे। शिष्य आगे बढ़ता रहा। अचानक संत ने पूछा- मिला? शिष्य ने जोर से उत्तर दिया- मिल गया गुरूजी।
दरअसल एक पक्षी, उस नौलखे हार में लगे लाल हीरों को, फल समझ कर, उसे पेड़ पर उठा ले गया था और वहीं छोड़ दिया था। तालाब के तल में हार नहीं, केवल उस हार की परछाई ही चमक रही थी।
संत कहने लगे- जब कहीं कोई वस्तु दिखती हो, पर मिलती न हो, तब समझ लेना चाहिए, कि वस्तु जहाँ दिखती है वहाँ होती नहीं और जहाँ होती है वहाँ दिखती नहीं।
लोकेशानन्द कहता है कि ठीक ऐसे ही, जगत में सुख केवल दिखता मात्र है, पर है नहीं। और जहाँ सुख है, वहाँ मालूम नहीं पड़ता। सुख तो आत्मा में है, परमात्मा में है, अपनाआपा में है, आप उस सुख को कहीं बाहर तो नहीं खोज रहे हैं?🙏🙏
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